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मुश्किल दौर में ईरान-अफगानिस्तान के बीच बढ़ती तकरार


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अफगानिस्तान: अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी और वहां तालिबान के आने के बाद देश संकट में है. उधर ईरान प्रतिबंधों से परेशान है. संकट के आलम में पड़ोसियों से रिश्ते बिगड़ रहे हैं. बीते हफ्तों में सीमा पर कई बार टकराव की नौबत आ गई.तालिबान की सत्ता आने के बाद ईरान से लगती करीब 960 किलोमीटर की सीमा पर रहने वाले अफगान लोगों के लिए ईरान जीवनरेखा बन गया है. तस्करों के पिक-अप में सवार सैकड़ों अफगान लोग काम और पैसे की तलाश में ईरान की ओर जाते रहे हैं. हालांकि बीते कुछ हफ्तों से इस खतरनाक रेगिस्तानी इलाके में तनाव की खबरें ज्यादा सुनाई देने लगी हैं. हर दिन यहां से 5000 अफगान लोग गुजरते हैं. ईंधन के कारोबार और साझे में पानी इस्तेमाल करने वाले इस इलाके का अतीत तो कई तरह के जुल्मों की याद भी दिलाता है. बीते कुछ हफ्तों से यहां बढ़ रहा तनाव कई बार तकरार में बदल जा रहा है. तालिबान और ईरानी बॉर्डर गार्ड के बीच ऐसे झगड़े हुए हैं. तीन शहरों में अफगान लोगों ने ईरान के खिलाफ रैलियां भी निकालीं. इतना ही नहीं प्रदर्शनकारियों ने ईरानी कॉन्सुलेट पर पथराव किया और इमारत के बाहर आग लगा दी. एक अफगान प्रवासी ने ईरान के सबसे पवित्र दरगाह पर कथित रूप से चाकूबाजी करके सनसनी फैला दी. रंजिशों के बढ़ने का खतरा राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देश इसे बढ़ाना नहीं चाहते लेकिन फिर भी लंबे समय से सुलग रही रंजिशों के नियंत्रण से बाहर चले जाने का खतरा मंडरा रहा है. यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में अफगानिस्तान विशेषज्ञ अंड्रयू वाटकिंस कहते हैं, “आपके सामने दुनिया की सबसे खराब शरणार्थी समस्या है जो रोजमर्रा की शांति और ऐतिहासिक कटुता के बीच धीरे-धीरे सुलग रही. कभी ना कभी ज्वालामुखी फटेगा” तालिबान के सदस्यों ने जाहरा हुसैनी के सामाजिक कार्यकर्ता पति की हत्या करने के बाद कहा कि सुरक्षित रहना है तो हममें से किसी एक से शादी कर लो.

31 साल की हुसैनी ने भागने का फैसला किया. वो और उनके दो छोटे छोटे बच्चे पैदल, मोटरसाइकिल और ट्रकों के सहारे भागते-भागते आखिरकार ईरान पहुंचने के बाद ही रुके. शरणार्थियों की मुश्किल हुसैनी जैसे लोगों के लिए सीमा पार करना बहुत मुश्किल हो गया है. संयुक्त राष्ट्र प्रवासी एजेंसी का कहना है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद ईरान ने अफगान प्रवासियों को वापस भेजना तेज कर दिया है. ईरान का कहना है कि प्रतिबंधों से जूझ रहे देश के पास शरणार्थियों को संभालने की ताकत नहीं है. इस साल के पहले तीन महीने में हर महीने पिछले साल की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा लोगों को वापस भेजा गया. अफगानिस्तान में एजेंसी के मिशन की अप प्रमुख एशले कार्ल ने यह जानकारी दी. उन्होंने यह भी बताया कि इस साल जिन 251,000 लोगों को वापस भेजा गया है उन्होंने इस कठिन यात्रा के दौरान कई जख्म झेले हैं. किसी का सामना कार हादसों से हुआ तो किसी ने गोलियां झेलीं. 35 साल के रोशनगोल हकीमी तालिबान की वापसी के बाद भाग कर ईरान चली गई थीं. वो बताती हैं कि तस्करों ने उन्हें और उनकी 9 साल की बेटी को बंधक बना लिया. हफ्ते भर बाद फिरौती देने पर उन्हें छोड़ा गया. हकीमी कहती हैं, “वो हमें गंदा पानी और सख्त बासी रोटी देते थे. हम मर रहे थे” जो नसीब वाले थे वो तेहरान की भीड़-भाड़ वाली गलियों में पड़े हैं. ईरान का आकलन है कि पिछले 8 महीनों में कम से कम 10 लाख लोगों ने ईरान से शरण मांगी है. ईरान पहले से ही मुश्किल में हुसैनी की तरह बहुत से लोग कानूनी पचड़े में फंसे हैं और उन पर दुर्व्यवहार और शोषण की तलवार लटक रही है. हुसैनी एक दर्जी की दुकान में काम करती हैं लेकिन मालिक ने उन्हें तनख्वाह देने से मना कर दिया.

इसी तरह उनके मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया. वह बड़ी मुश्किल से इतना पैसा जुटा पाती हैं कि अपने बच्चों को खिला सकें. दक्षिणी तेहरान में एक छोटे से कमरे में गुजारा कर रहीं हुसैनी कहती हैं, “हमारे पास कुछ नहीं है ना ही कोई जगह जहां हम जा सकें” उनके कमरे में बस एक दान में मिला गैस हीटर, कुर्सियां और कुछ कंबल हैं. ज्यादा अफगानों के ईरान पहुंचने से उन्हें मिलने वाली मदद मुश्किल होती जा रही है. ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खातिब जादेह ने पिछले महीने कहा, “विस्थापित अफगान लोगों की भीड़ का ईरान आना जारी नहीं रह सकता” क्योंकि ईरान की “क्षमताएं सीमित हैं” ईरान में युवा बेरोजगारी की दर 23 फीसदी है. ईरान की मुद्रा रियाल 2018 के बाद से अब तक अपनी 50 फीसदी से ज्यादा कीमत खो चुकी है. तेहरान में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक रिया गोबेशावी ईरानी और अफगान लोगों के बीच बढ़ते संघर्ष पर कहते हैं, “बड़ी चुनौती यह है कि ईरान शरणार्थियों की नई परिस्थिति के लिए तैयार नहीं है” यह भी पढ़ेंः तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव शरणार्थियों के साथ चरमपंथी अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक हजारा शियाओं को निशाना बना कर हुए हमले के बाद ईरान ज्यादा चौकन्ना हो गया है. चरमपंथी उन्हें लगातार धमकियां दे रहे हैं हालांकि तालिबान उन्हें सुरक्षा देने का वादा कर रहा है. तेहरान में प्रमुख अफगान पत्रकार अब्बास हुसैनी कहते हैं, “ऐसी खबरें आई हैं कि कुछ चरमपंथी शरणार्थियों के साथ आसानी से ईरान में घुस जा रहे हैं” पिछले महीने ईरान के सबसे पवित्र शिया धर्म स्थल में एक हमलावर ने तीन मौलवियों पर चाकू से हमला कर दिया. इनमें से दो की मौत हो गई. यहां इस तरह की हिंसा की घटना बहुत दुर्लभ बात है. बात में हमलावर की मीडिया ने उज्बेक मूल के अफगान नागरिक के रूप में पहचान की. इसके बाद अफगान शरणार्थियों पर हमले के वीडियो की ईरानी सोशल मीडिया पर बाढ़ आ गई. इन वीडियो क्लिपों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन इनमें ईरानियों को अफगान लोगों का अपमान करते और उन्हें मारते देखा जा सकता है. ईरान में इन्हें भ्रम फैलाने वाले वीडियो कह कर खारिज कर दिया गया है लेकिन अफगानिस्तान वहां अखबारों की सुर्खियों में हैं और लोगों में इसे लेकर थोड़ी बेचैनी है. प्रदर्शनकारियों ने पश्चिमी अफगानिस्तान के हेरात शहर में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर पथराव किया और काबुल में दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन. “अफगान लोगों को मारना बंद करो” और ईरान मुर्दाबाद के नारे लगाती भीड़ हेरात और खोस्त प्रांत में नजर आई.

ईरान ने अफगानिस्तान में 10 दिनों के लिए अपने सारे राजनयिक मिशन बंद कर दिये. यह भी पढ़ेंः अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हमले में 45 लोगों की मौत अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने इस मसले को ईरानी राजदूत के सामने उठाया. मुत्ताकी का कहा है कि अफगान शरणार्थियों के साथ बुरा बर्ताव दोनों देशों के रिश्तों पर बुरा असर डालेगा. दोनों को एक दूसरे की जरूरत विश्लेषकों का कहना है कि ग्लोबल बैंकिंग सिस्टम से कटे दोनों देश नगदी की समस्या से जूझ रहे हैं और उनकी एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ गई है. ऐसे में ये नहीं चाहते कि तनाव और बढ़े. चाथम हाउस के मिडिल ईस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीक प्रोग्राम के उप निदेशक सनम वकील कहते हैं, “पड़ोसियों के जरिये ईरान प्रतिबंधों से लड़ सकता है, मुद्रा का विनिमय, लेनदेन और अपनी अर्थव्यवस्था को जीवित रख सकता है” हालांकि यही पड़ोसी पिछले हफ्ते टकराव की स्थिति में आ गय थे जब तालिबान के गार्डों ने सीमा पर एक सड़क बनानी चाही. ईरान के गार्ड बेहद चौकन्ने हो गये और आवाजाही का रास्ता बंद हो गया. एक दूसरे के महत्व से वाकिफ दोनों देश कूटनीति के रास्ते पर चल रहे हैं. पिछले हफ्ते खातिबजादेह ने वादा किया कि उनका देश तालिबान के राजनयिकों को पहली बार मान्यता देगा जिससे कि दूतावासों में बढ़ रही फाइलों का निपटारा हो सके. इस बीच तालिबान के अधिकारियों ने तेहरान का दौरा कर अफगान शरणार्थियों के साथ हो रहे व्यहार पर चर्चा की है. बहुत से शरणार्थी अफगानिस्तान में हो रहे अत्याचारों से बचने और अपने सपनों को पूरा करने ईरान आते हैं लेकिन यहां भी उन्हें बमुश्किल निर्माण क्षेत्र, फैक्ट्रियों या फिर खेतों में मजदूरी का काम ही मिल पाता है. हकीमी की 9 साल की बेटी की तरह कुछ लोग ये उम्मीद करते हैं कि वो एक दिन यूरोप जा सकेंगे. उसके पिता एक पुलिस अधिकारी थे जो तालिबान की गोलियों से मारे गये. यासमिन के पिता ने उनके अंदर पढ़ाई का जज्बा भर दिया और वो जर्मनी जाने के सपने देखा करती है. तेहरान के एक कमरे में रहने वाली यासमीन कहती है, “हम एक बुरा भविष्य नहीं चाहते. हम अपने पिता की तरह पढ़ा लिखा बनना चाहते हैं”

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