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तबाही का 53 वां दिन: क्यों आ गया है रूस और यूक्रेन के बीच जारी वार्ता में ठहराव?


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नई दिल्ली: युद्ध रोकने के मकसद से रूस और यूक्रेन के बीच चल रही वार्ता में ठहराव आ गया है। छह हफ्तों से जारी युद्ध के बीच चली वार्ता के अब तक किसी मुकाम तक पहुंचने के संकेत नहीं हैं। रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया था। 28 फरवरी से दोनों से बीच बातचीत शुरू हुई। बीच में एक मौके पर आशाजनक संकेत मिले। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। बाद में रूस ने आरोप लगाया कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की अपनी बात पर कायम नहीं रहते। रूस ने कहा है कि इस हाल में बातचीत का कोई फायदा नहीं है।

जानकारों के मुताबिक बातचीत मुख्य रूप से चार मुद्दों पर हुई हैः यूक्रेन की राजनीति को नाजीवादी ताकतों से मुक्त करना, यूक्रेन की सैनिक शक्ति का खात्मा, क्राइमिया और दोनबास इलाकों की स्थिति, और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विस्तार का मसला। बातचीत के दौरान एक मौके पर उम्मीद तब जगी थी, जब यूक्रेन ने यह कहा कि वह नाटो में शामिल होने की इच्छा को छोड़ने को तैयार है। यह बात यूक्रेन के संविधान में लिख दी जाए, इसके लिए भी उसने रजामंदी दिखाई थी। लेकिन आरोप है कि बाद में यूक्रेन इस बात से मुकर गया।

उसके बाद जेलेन्स्की कह चुके हैं कि यूक्रेन चाहता है कि पश्चिमी देश उसकी सुरक्षा की गारंटी करेँ। दूसरी तरफ रूस का कहना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ, तो पूरे यूरोप का सुरक्षा परिदृश्य बदल जाएगा। यह उसकी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होगा। रूसी विश्लेषकों का कहना है कि नाटो में शामिल होने की यूक्रेन की कोशिशों के कारण ही मौजूदा युद्ध शुरू हुआ है।

खबरों के मुताबिक टर्की के शहर इस्तांबुल में हुई बातचीत के दौरान यह सहमति बनी थी कि यूक्रेन नाटो में शामिल ना होने की शर्त मान ले, तो रूस इस पर राजी हो जाएगा कि पश्चिमी देश अन्य माध्यमों से उसकी सुरक्षा की गारंटी करें। इस पर भी सहमति बनी थी कि क्राइमिया और दोनबास इलाकों की स्थिति को भविष्य में होने वाली बातचीत से तय किया जाएगा।

तब यूक्रेन की संसद के स्पीकर रुस्लान स्तिफानेचुक ने टीवी चैनल यूक्रेन-24 से बातचीत में कहा कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होने की इच्छा को छोड़ता है, तो इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा। उधर रूस के अधिकारियों ने कहा है कि रूस को नाजी मुक्त और सैन्य-मुक्त भी करना होगा, क्योंकि ऐसा ना होने पर रूस के लिए सैनिक, सांस्कृतिक, सूचना संबंधी, भाषाई और सभ्यता संबंधी खतरे काम रहेंगे। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव कह चुके हैं- यह एक स्पष्ट खतरा है, जिससे अभी ही निपटना होगा।

सोवियत संघ के भंग होने पर 1991 में यूक्रेन अलग देश बना था। तब उसने गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलने की घोषणा की थी। लेकिन 2004 में यूक्रेन में हुए ‘ऑरेंज रिवोल्यूशन’ के बाद यूक्रेन की नीति बदलने लगी। 2014 में जब वहां अमेरिका समर्थित प्रदर्शनों के बाद जब यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन हुआ, उसके बाद यूक्रेन ने घोषित रूप से गुटनिरपेक्षता की नीति छोड़ दी। उसने नाटो में शामिल होने की कोशिश शुरू कर दी। रूस का कहना है कि ऐसा होने पर नाटो की सेना उसकी सीमा तक आ जाएगी। यह उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है।

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