नई दिल्ली – L&T भारतीय नौसेना के लिये दो बहुउद्देश्यीय जहाज का निर्माण करेगी, शुक्रवार को ही भारतीय नौसेना (Indian Navy) के लिए दो बहुउद्देश्यीय पोतों के अधिग्रहण को लेकर एलएंडटी के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किये गये. कॉन्ट्रैक्ट के तहत एलएंडटी 887 करोड़ रुपये की लागत के साथ इन एमपीवी (Multi-Purpose Vessels) का निर्माण करेगी. इन जहाजों को मई 2025 तक भारतीय नौसेना को सौंपे जाने का समय रखा गया है. रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार इस कॉन्ट्रैक्ट से आत्मनिर्भर भारत अभियान को बड़ा सपोर्ट मिलेगा. दरअसल ये कॉन्ट्रैक्ट भारतीय से खरीदें (Buy-Indian) कैटेगरी के तहत दिया गया है.
इसी हफ्ते भारत सरकार ने जानकारी दी है कि एलएंडटी और अडानी एंटरप्राइजेस ने पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी पीएसएलवी रॉकेट तैयार करने की इच्छा जताई है. अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागेदारी को बढ़ावा देने के लिये अंतरिक्ष विभाग के तहत आने वाली न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड ने उद्योग जगत से 5 पीएसएलवी के निर्माण के लिये प्रस्ताव मांगे थे. सरकार के द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक पीएसएलवी के निर्माण के लिये दो कंर्सोशियम की तरफ से प्रस्ताव मिले हैं. जिसमें से एक में एचएएल और एलएंडटी शामिल हैं. दूसरा प्रस्ताव भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, अडानी एंटरप्राइसेस और भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड ने मिलकर दिया है. इसरो पहले से ही लॉन्च व्हीकल, सेटेलाइट और दूसरे कंपोनेंट के निर्माण में निजी क्षेत्र की मदद ले रही है. हालांकि 2020 में सरकार ने निजी क्षेत्र के लिये पूरा अंतरिक्ष क्षेत्र खोल दिया है, जिसमें दूसरे ग्रहों से जुड़ी खोज भी शामिल है.
एलएंडटी शिपयार्ड इन जहाजों का निर्माण चेन्नई के कट्टुपल्ली में करेगी. ये एमपी कई भूमिकाएं निभाएंगे जिसमें समुद्री निगरानी व गश्ती, टारपीडो की लॉन्चिंग सहित कई ऑपरेशंस शामिल होंगे. ये पोत दूसरे जहाजों को खींचने और मानवीय सहायता व आपदा राहत ऑपरेशंस में भी सक्षम होंगे. साथ ही जरूरत पड़ने पर ये शिप एक सीमा तक अस्पताल की भी भूमिका निभा सकेंगे. इन जहाजों को देश के द्वीप क्षेत्रों में लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार ये कॉन्ट्रैक्ट भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत के पहल के अनुरूप है और निजी क्षेत्र की वेसल निर्माण में भागेदारी और बढ़ाएगा और प्रोत्साहित करेगा. इन जहाजों में इस्तेमाल होने वाली अधिकांश उपकरण और प्रणाली के स्वदेशी होने की वजह से ये भारत सरकार के मेक इन इंडिया मेक फॉर वर्ल्ड अभियान को भी बढ़ावा दे सकेगा.