रोज़ 150 असहाय माता-पिता को खाना खिलाते हैं सूरत के ये दोनों भाई, फ्री इलाज भी करवाते है
मुंबई : आज भी दुनिया में ऐसे कई माता-पिता हैं जिनके पास बुढ़ापे में उनका साथ देने वाला कोई नहीं है। या जिनके बच्चे उनका साथ नहीं देते है। इन बुजुर्गों को अकेले अपना जीवन जीने में बहुत मुश्किल होती है। गुजरात के सूरत के अलथान में रहने वाले दो भाई गौरांग और हिमांशु सुखाड़िया ऐसे बुजुर्गों की जिंदगी में देवता बन गए हैं. दरअसल गौरांग और हिमांशु 2012 से हर दिन 150 असहाय बुजुर्ग माता-पिता को मुफ्त भोजन मुहैया करा रहे हैं। उनकी सेवा केवल भोजन तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह उनके स्वास्थ्य संबंधी उपचार और अन्य आवश्यक चीजों में भी मदद करते है।
यह सब तब शुरू हुआ जब दोनों भाइयों ने एक कार दुर्घटना में अपने पिता को खो दिया। घटना के वक्त गौरांग और उसके पिता कार में थे। घटना में उनके पिता की मृत्यु हो गई लेकिन गौरांग बच गया। उसके बाद गौरांग को हमेशा इस बात की चिंता सताती रहती थी कि वह अपने पिता के लिए कभी कुछ खास नहीं कर सका। तभी उनके मन में यह विचार आया कि यदि उन्होंने अपने पिता के लिए कुछ नहीं किया तो भी वो दूसरों के माता-पिता के लिए कुछ कर सकते हैं। तभी से उन्होंने बुजुर्ग और असहाय माता-पिता के घर टिफिन पहुंचाना शुरू कर दिया।
दोनों भाई खाने-पीने के व्यवसाय के साथ-साथ संपत्ति निवेश का व्यवसाय चलाते हैं। जब उन्होंने वह व्यवसाय शुरू किया, तो उन्होंने केवल 30 बुजुर्गों को भोजन भेजा, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर 150 हो गई। उन्हें हर दिन खाना भेजा जाता है। एक भी दिन छुट्टी नहीं लेते है। भोजन तैयार करने के लिए कर्मचारियों को काम पर रखा गया है। चार रिक्शा मिलकर टिफिन पहुंचाने का काम करते हैं। इस काम में उन्हें हर महीने 1 लाख 20 हजार रुपये का खर्च आता है। फिर भी उन्होंने कभी किसी से मदद नहीं मांगी। गौरांग का कहना है कि अक्सर लोगों को स्वेच्छा से मदद की जरूरत होती है।
गौरांग आगे कहते हैं कि जब कोई बच्चा अपने माता-पिता को छोड़ देता है तो बहुत दुःख होता है। अब मैं इस दुःख को कम तो नहीं कर सकता लेकिन उनके दुःख में शामिल हो सकता हूं। यही वजह है कि गौरांग इन बेबस बूढ़े लोगों को न सिर्फ खाना पहुंचाते हैं बल्कि उनके पास जाकर उनका हाल भी पूछते हैं. वह उनसे ये भी पूछते है कि उनके बच्चों ने उन्हें क्यों छोड़ दिया। इतना ही नहीं, वह उनकी दवाओं, चश्मों और अन्य उपचारों का भी ध्यान रखते है। इस सारे काम पर गौरांग खुद नजर रखते हैं।
इस काम में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए गौरांग ने कहा कि अक्सर ऐसा होता है कि जब मैं इन बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करता हूं, तो उनके बच्चे शर्म से उन्हें अपने साथ ले जाते हैं। ये दोनों भाई हम सभी के लिए एक प्रेरणा हैं। उन्हें हमारा सलाम।