x
भारत

कोटा में विश्व का इकलौता विभीषण मंदिर, कुछ इस प्रकार मनाते है होली का त्योहार


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

राजस्थान: भले ही विभीषण को लंका भेदी कहा जाता है लेकिन कोटा में विभीषण को लोग हजारों साल से पूजते आ रहे हैं। हर साल होली पर यहां विभीषण मेला लगता है।
आपने ‘घर का भेदी लंका ढहाए’ कहावत जरूर सुनी होगी। रावण के भाई विभीषण के लिए ये कहावत कही गई है। भले ही ये कहावत रावण को छोड़कर राम का साथ देने के लिए विभीषण पर गढ़ी गई हो लेकिन देश में एक ऐसी जगह है, जहां विभीषण को राम भक्त मानकर पूजा जाता है। इसी मंदिर में होलिका दहन के दिन हिरण्यकश्यप के पुतले का भी दहन किया जाता है।

कोटा के कैथून कस्बे में देश का एकमात्र विभीषण का मंदिर है, जहां हर साल बड़ी संख्या श्रद्धालु आते हैं। होली पर इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 5000 हजार साल पुराना है। मंदिर से एक पौराणिक कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के समय शिवजी ने मृत्युलोक की सैर करने की इच्छा प्रकट की। जिसके बाद विभीषण ने कांवड़ पर बिठाकर भगवान शंकर और हनुमान को सैर कराने की ठानी। इस पर शिवजी ने शर्त रख दी कि जहां भी उनका कांवड़ जमीन को छुएगा, यात्रा वहीं खत्म हो जाएगी। विभीषण शिवजी और हनुमान को लेकर यात्रा पर निकले। कुछ स्थानों के भ्रमण के बाद विभीषण का पैर कैथून कस्बे में धरती पर पड़ गया और यात्रा खत्म हो गई। कांवड़ का अगला सिरा करीब 12 किलोमीटर आगे चौरचौमा में और दूसरा हिस्सा कोटा के रंगबाड़ी इलाके में पड़ा। ऐसे में रंगबाड़ी में भगवान हनुमान और चौरचौमा में शिव शंकर का मंदिर स्थापित किया गया और जहां विभीषण का पैर पड़ा, वहां विभीषण मंदिर का निर्माण करवाया गया।

मंदिर में लगी विभीषण की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है। मंदिर में स्थापित प्रतिमा का केवल धड़ से ऊपर का भाग ही दिखता है। मीडिया रिर्पोट्स के अनुसार यह प्रतिमा हर साल जौ के दौने के बराबर जमीन में धंसती है।

होली के अवसर पर कैथून में विभीषण मेला लगता है। सात दिवसीय इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं। पिछले दो साल से इस मेले पर कोरोना का साया है। इस बार यह मेला सिर्फ एक दिन ही आयोजित किया जा रहा है।

कैथून की सबसे खास बात यह है कि देश भर में यहां सिर्फ हिरण्यकश्यप का पुतला दहन किया जाता है। कहा जाता है कि होलिका जब जल गई तो हिरण्यकश्यप को गुस्सा आ गया और वह प्रह्लाद को मारने के लिए दौड़ा। तब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया और भक्त प्रह्वलाद की रक्षा की थी। इसलिए यहां पर होलिका दहन के दूसरे दिन हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन किया जाता है।

 

Back to top button