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Russia-Ukraine war के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल


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नई दिल्ली – कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने भारत और अन्य आयात-निर्भर देशों को मुद्रास्फीति के जोखिम में डाल दिया है। भारत में विधानसभा चुनाव के कारण 6 दिसंबर के बाद से पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़े हैं। इन तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमतों में 3% की तेजी आई है। इससे घरेलू बाजार में कीमतों में तेज उछाल आ सकता है। गुरुवार सुबह ब्रेंट क्रूड 113 था, जबकि अमेरिकन क्रूड 115 पर था। इसके विपरीत रूस की वैरायटी रुसल क्रूड 5 प्रति बैरल पर कारोबार कर रही थी। वैश्विक बाजार में यूक्रेन पर रूस के हमले से कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो गई है। रूस दुनिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित किया है लेकिन युद्ध के नतीजों ने दुनिया के विभिन्न देशों में आर्थिक संकट की स्थिती भी पैदा की हैं। वैश्विक विशेषज्ञों ने कहा कि अब दुनिया के सभी देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति में वृद्धि है। युद्ध के मद्देनजर, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें आज 115 प्रति बैरल के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गईं।

कच्चे तेल की कीमतें तीन साल के उच्चतम स्तर पर हैं लेकिन सरकार ने मौजूदा चुनावी माहौल के कारण भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को बनाए रखा है। अगर पेट्रोल-डीजल की कीमतो मे वृद्धि होती है तो महंगाई आसमान छू जाएगी, महंगाई बढ़ेगी और रिजर्व बैंक को ब्याज दरें बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ेगा।

विभिन्न निवेश बैंकर भविष्यवाणी कर रहे हैं कि कच्चे तेल की कीमतें और बढ़कर 15-150 हो जाएंगी। 2007 में, कच्चे तेल की कीमतें 15-16 के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गईं। अब, विशेषज्ञों को डर है कि रिकॉर्ड टूट सकता है और रूस-यूक्रेन विवाद में एक नया शिखर देखा जा सकता है।

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