
नई दिल्ली – यूक्रेन-रूस का युद्ध बढ़ता ही चला जा रहा है। इसका भुगतान भारत को करना पड़ सकता है। दरअसल कच्चे तेल (crude oil) की कीमतों के आसमान में पहुंचने के साथ ही इस बात की संभावनाएं पहले से ही जताई जा रही हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी. हालांकि सवाल ये था कि ये बढ़ोतरी कब और कितनी होगी.
अब एक ब्रोकरेज फर्म ने अनुमान दिया है कि अगले हफ्ते जब देश में जारी विधानसभा चुनाव खत्म होंगे तो पेट्रोल और डीजल (Petrol and diesel) कीमतों में धीरे धीरे बढ़त की शुरुआत देखने को मिल सकती है. फर्म कै अनुमान है कि फिलहाल तेल कंपनियों को घाटा खत्म करने के लिये ईंधन की कीमतों में 9 रुपये प्रति लीटर की बढ़त करने की जरुरत है. यानि कीमतें इसी स्तर पर रहती हैं तो कंपनियां धीरे धीरे पेट्रोल की कीमत 9 रुपये प्रति लीटर बढ़ा सकती है.
एक रिपोर्ट के मुताबित, अगले हफ्ते तक राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त हो जाएंगे. अनुमान है कि इसके बाद ईंधन की दरें दैनिक आधार पर बढ़ सकती हैं. उत्तर प्रदेश मे सातवें और अंतिम चरण का मतदान सात मार्च को होगा तथा उत्तर प्रदेश समेत सभी पांच राज्यों के लिए मतगणना 10 मार्च को होनी है. कच्चे तेल के दाम चढ़ने से सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को पेट्रोल और डीजल पर 5.7 रुपये प्रति लीटर का घाटा उठाना पड़ रहा है. जे.पी. मॉर्गन के मुताबिक तेल विपणन कंपनियों को सामान्य मार्केटिंग प्रॉफिट पाने के लिए खुदरा कीमतों में 9 रुपये प्रति लीटर या 10 प्रतिशत की वृद्धि करने की आवश्यकता है. घरेलू स्तर पर ईंधन की कीमतों में लगातार 118 दिन से कोई बदलाव नहीं किया गया है.
रूस से तेल की आपूर्ति में व्यवधान की आशंका से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का दाम 2014 के बाद पहली बार 110 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच गए. IEA के सदस्य देशों ने अपने स्ट्रेटजिक रिजर्व से 6 करोड़ बैरल तेल को जारी करने का फैसला लिया है. जो कि बाजार के अनुमानों से कम था इसी वजह से कीमतों में उछाल देखने को मिला है. भारत जो कच्चा तेल खरीदता है उसके दाम एक मार्च को 102 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गए. ईंधन का यह मूल्य अगस्त 2014 के बाद सबसे ज्यादा हैं. पिछले साल नवंबर की शुरुआत में जब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि पर लगाम लगी थी, तब कच्चे तेल की औसत कीमत 81.5 डॉलर प्रति बैरल थी.