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Bhopal Gas Tragedy : डरावनी रात और चीखती सुबह की दास्तां का सच, आज ही के दिन भोपाल ने झेली थी दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी


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भोपाल – 2-3 दिसंबर 1984 की वो रात को भोपाल क्या पूरा देश कभी नहीं भूल सकता है। देश ही नहीं दुनिया ने एक ऐसी तबाही देखी जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। आपने भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की कई विचलित करने वाली तस्वीरें देखी होंगी लेकिन 37 साल पहले की वह रात कैसे हजारों लोगों की जिंदगियों को तबाह कर गई ये बयां नहीं किया जा सकता है। कहते हैं कि गैस लीकेज के बाद चारों तरफ चीख पुकार मची हुई थी और लाशों को ढोने तक के लिए गाड़ियां कम पड़ गई थीं।

भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी की घटना जो एक भूचाल की तरह आकर सब कुछ तबाह करके चली गई, जिसमें न जानें कितने अपने-अपनों से बिछड़ गए थे एवं कई तो हमेशा के लिए ही अपनी आंखों को बंद कर इस दुनिया को अलविदा कह चले थे। इस भीषण त्रासदी में हजारों लोगों ने अपनी जान गवाई थी। सबसे बड़ी घटनाओं के जिक्र के दौरान भोपाल के गैस त्रासदी कांड का नाम शामिल न हो, ऐसा असंभव ही होगा और न ही इसे कभी भुलाया जा सकता है। साल 1984 में 2 दिसंबर की रात बेहद ही डरावनी और फिर दूसरे दिन यानी 3 दिंसबर की सुबह चीख-पुखारों वाली नजर आई थी। पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना व दर्दनाक औद्योगिक हादसों में से एक भोपाल गैस त्रासदी की आज (3 दिसंबर, 2021) की 37वीं बरसी है।

भारत में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) नाम की कंपनी है, जिसे साल 1969 में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन द्वारा स्थापित किया गया था। यूनियन कार्बाइड का यह कारखाना भोपाल में छोला रोड पर स्थित है। इसके खुलने के बाद साल 1979 में भोपाल में एक प्रोडक्शन प्लांट की शुरुआत की गई, इसमें भी मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) कीटनाशक ही बनाया जाता था। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी से MIC गैस का रिसाव हुआ था। सावधानी बरतने की बजाय एक लापरवाही ये भी कही गई। यहां प्लांट के ऊपर एक E610 नामक टैंक बना हुआ था, जिसमें 40 टन से अधिक MIC नहीं होनी चाहिए, परंतु इसमें 40 टन से अधिक 42 टन MIC भरी हुई थी और यहीं बड़ी दुर्घटना का कारण बनी। इसमें E610 टैंक में अचानक पानी घुस गया, जिसके बाद गैस का रिसाव होना शुरू हो गया। तो वहीं, पाइपलाइन में जंक के कारण गैस पर कंट्रोल पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और इस जंक के कारण टैंक में लोहे के मिल जाने से टैंक का तापमान नॉर्मली तापमान 4 से 5 डिग्री रहने की बजाया बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया। तो वहीं, टैंक के अंदर दबाव बढ़ने से इमर्जेंसी प्रेशर पड़ने लगा और लगभग 50 से 60 मिनट के अंदर ही 40 मीट्रिक टन MIC जहरीली गैस का रिसाव हो गया।

डरावनी रात और चीखती सुबह की दास्तां का सच –
– 2 दिसंबर को रात के समय करीब 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी और जहां सुपरवाइजर व मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे।

– 9 बजे करीब जब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकले, 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई।

– इसके बाद टैंकर का तापमान 200 डिग्री तक पहुंचा और गैस बनने लगी। रात के 10:30 बजे के करीब टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। इसी दौरान वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया।

– भोपाल गैस प्लांट पर 3 दिसंबर, 1984 रात 12.15 बजे वहां मौजूद कर्मचारियों को घबराहट होने लगी। वाल्व बंद करने की कोशिश की गई, लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा। आस-पास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी। तो वहीं, इस जहरीली गैस ने भोपाल के हजारों लोगों की लीला एक झटके में ही समाप्त कर दी।

– गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड के मुख्यल प्रबंध अधिकारी वॉरेन एंडरसन रातों रात भारत छोड़कर अमेरिका चले गए थे। हालांकि, इसके मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की 29 सिंतबर, 2014 को मौत हो चुकी है।

– वर्ष 2010 में 7 जून को स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन इन सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा भी कर दिया गया।

– इतना ही नहीं, गैस त्रासदी के बाद जो बच्चों ने जन्म लिया, उनमें कई विकलांग व किसी बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। इसके अलावा जो भी इस जहरीली गैस की चपेट में आए, लेकिन बच गए, वो सालों तक इलाज कराने के बाद भी कई कष्टों को सहते हुए जिंदगी गुजारने को विवश हो गए थे। हालांकि, आज भी सैंकड़ों परिवार इस हादसे के जख्म सह रहे हैं। गैस त्रासदी कितनी भयावह थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, गैस प्रभावित कई लोगों के यहां जन्म लेने वाले बच्चे नि:शक्तता का दंश झेल रहे हैं। भोपाल गैस त्रासदी में मरने वालों की संख्या कितनी थी, इसका सही आंकड़ा आज तक सामने नहीं आया, हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5 लाख 58 हजार 125 लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और दूसरे जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में आ गए, इस हादसे में तकरीबन 25 हजार लोगों की जान गई। इसके बाद भी मौत का सिलसिला बरसों तक चलता रहा।

क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े –
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फैक्ट्री से 40 टन गैस रिसाव हुआ था जिसमें 5,74,376 लोग प्रभावित हुए थे जबकि करीब 3800 लोगों की मौत हुई थी। गैस त्रासदी के बाद इसके प्रभावित 52100 प्रभावितों को 25 हजार रुपये का मुआवाज दिया गया जबकि मारे गए लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये और अत्यधिक प्रभावितों को 1-5 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। हालांकि मौत को लेकर विभिन्न समूह या सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि मरने वालों की संख्या 8-10 हजार हो सकती है।

आज भी भुगत रहे हैं लोग –
इस गैस कांड के चलते 25 हजार से अधिक लोग शारीरिक तौर पर पूरी तरह विकलांग हो गए। इंसान ही नहीं हजारों जानवर भी इस त्रासदी का शिकार बने। इस त्रासदी के बाद आज भी नई पीढ़िया इसका खामियाजा भुगत रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, गैस पीड़ित माताओं से जन्में बच्चों में जन्मजात विकृतियों की दर गैस पीड़ितों की तुलना में अधिक है। आज भी इस त्रासदी के शिकार कई लोग न्याय के लिए भटक रहे हैं। कई सवाल अब भी ऐसे हैं जो अनसुलझे हैं।

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