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पूरी दुनिया में मनाया जा रहा प्रकाश पर्व, इस वर्ष गुरु नानक देव की 552वीं जयंती


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पंजाब – Guru nanak jayanti: पूरी दुनिया में आज कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव की जयंती मनाई जा रही है. प्रकाश पर्व पर सभी गुरुद्वारों में भजन और कीर्तन का आयोजन किया जा रहा है. सिख समुदाय के प्रणेता गुरुनानक देव का 552वां प्रकाश पर्व है. गुरुनानक जयंती को सिख धर्म में गुरु पर्व या गुरु परब के नाम से मनाया जाता है. ये सिख धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. आज के दिन सुबह प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं और गुरुद्वारों में सबद कीर्तन का आयोजन किया जा रहा है. सभी घरों और गुरुद्वारों को रोशनी से सजाया गया है. वहीं अलग-अलग शहर में लंगरों का आयोजन किया जा रहा है. गुरु नानक जयंती या गुरुपर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मानाई जाती है.

काश पर्व पर, दुनिया भर के सिख गुरु नानक जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जो 1469 में लाहौर (पाकिस्तान में) के पास राय भोई की तलवंडी, जिसे अब नानक साहिब के नाम से जाना जाता है, में पैदा हुए थे. इस वर्ष गुरु नानक जी की 552वीं जयंती समारोह मनाया जा रहा है. पारंपरिक बिक्रमी कैलेंडर के अनुसार, गुरु नानक का जन्म कार्तिक (कटक) पूर्णिमा (पूर्णमासी) को हुआ था. इस साल यह 19 नवंबर 2021 को पड़ रहा है. वहीं इस बार करतारपुर कॉरिडोर के दोबारा खुलने से सिख संगत की खुशी दोगुनी हो गई है. ननकाना साहिब में जन्मे श्री गुरु नानक देव जी ने पंजाब के सुल्तानपुर लोधी में मूल मंत्र का उच्चारण कर गुरु ग्रंथ साहिब की बुनियाद डाली थी. यहां पर वे लगभग 14 साल भक्ति में लीन रहे. यहीं से उन्होंने अपनी यात्रा का आगाज किया था.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने आज प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं सोशल मीडिया के जरिए दी है और गुरु नानक जी की जयंती पर उन्हें नमन किया है.

आज कार्तिक पूर्णिमा व गुरु नानक जयंती पर देश के विभिन्न राज्यों से आए 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने यमुनानगर के बिलासपुर के कपाल मोचन में तीनों सरोवर में स्नान करके आस्था की डुबकी लगाई. पिछले 5 दिनों से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों से श्रद्धालु कपाल मोचन मेले में पहुंच रहे थे। आज मुख्य स्नान के समय सबसे पहले नागा साधुओं ने स्नान किया. उसके बाद बाकी श्रद्धालुओं ने स्नान करना शुरू किया. और मुख्य दिन पर उत्सव अमृत वेला से शुरू होता है. प्रात:काल के भजनों का पाठ करने के बाद कथा और कीर्तन का वर्णन होता है. फिर, प्रार्थना के बाद, सिख लंगर या सामुदायिक भोजन के लिए एकत्र होते हैं. भोजन (लंगर) के बाद, कथा और कीर्तन का पाठ जारी रहता है, और उत्सव रात में गुरबानी के साथ समाप्त होता है.

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