नई दिल्ली – इतिहास में शायद पहली बार वैज्ञानिक तीन सप्ताह की उम्र के एक भ्रूण का अध्ययन कर पाए हैं और इसकी वजह से उन्हें मानव विकास के शुरुआती और बेहद आवश्यक पड़ाव की एक दुर्लभ झलक मिली है.इस अध्ययन के लिए यूरोपीय शोधकर्ताओं ने 16 से 19 दिन की उम्र के एक भ्रूण का अध्ययन किया जिसे एक ऐसी महिला ने दान में दिया था जिसे अपने गर्भ का अंत कराना था. विशेषज्ञों का कहना है कि विकास के इस पड़ाव के बारे में शोधकर्ताओं को बहुत कम जानकारी थी क्योंकि इस उम्र के इंसानी भ्रूण मिलते ही नहीं हैं. तीन सप्ताह के गर्भ तक तो अधिकांश महिलाओं को यह मालूम ही नहीं होता कि वो गर्भवती हैं.
इसके अलावा दशकों पुराने वैश्विक दिशानिर्देशों की वजह से हाल तक इंसानी भ्रूण को प्रयोगशालाओं में 14 दिनों से ज्यादा उगाने की मनाही भी थी. नया अध्ययन ‘नेचर’ पत्रिका में छपा है. ऐतिहासिक शोध इस अध्ययन में “गैस्ट्रुलेशन” के बारे में बताया गया है, जो फर्टिलाइजेशन के करीब 14 दिनों बाद शुरू होती है और लगभग एक सप्ताह तक चलती है. इस समय भ्रूण पोस्ते के एक दाने के आकार का होता है. अध्ययन के मुख्य खोजकर्ता शंकर श्रीनिवास ने बताया, “यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत तरह तरह की कोशिकाओं का जन्म होता है” श्रीनिवास ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में डेवलपमेंटल बायोलॉजी के विशेषज्ञ हैं और इस शोध पर उन्होंने इंग्लैंड और जर्मनी में अपने सहयोगियों के साथ काम किया है.
“गैस्ट्रुलेशन के दौरान ही तरह तरह की कोशिकाएं न सिर्फ सामने आती हैं बल्कि शरीर को बनाने के लिए वो अलग अलग जगह जा कर अपना अपना स्थान भी ले लेती हैं. इसके बाद वो अपने अपने काम करती हैं ताकि उनसे सही अंगों का निर्माण हो सके” शोधकर्ताओं को तरह तरह की कोशिकाएं मिलीं, जिनमें रेड ब्लड कोशिकाएं और अंडे या शुक्राणु बनाने वाली “मौलिक जर्म कोशिकाएं” शामिल हैं. हालांकि श्रीनिवास ने बताया कि शोधकर्ताओं को न्यूरॉन नहीं दिखे, जिसका मतलब है इस पड़ाव में भ्रूण के पास अपने पर्यावरण को समझने के साधन नहीं होते हैं. चिकित्सा में मदद ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के अधिकारियों के कहा कि इंसानों में शरीर के विकास के इस चरण की इस तरह से मैपिंग आज से पहले कभी नहीं हुई. शोध के लेखकों को उम्मीद है कि उनके काम से न सिर्फ विकास के इस चरण पर रौशनी पड़ेगी बल्कि वैज्ञानिक प्रकृति से स्टेम कोशिकाओं को ऐसी कोशिकाओं में बदलने के बारे में सीख पाएंगे जिनकी मदद से चोट या बीमारियों को ठीक किया जा सकेगा.
लंदन के फ्रांसिस क्रिक संस्थान में स्टेम कोशिकाओं के विशेषज्ञ रॉबिन लोवेल-बैज ने कहा कि इंसानी भ्रूणों पर प्रयोगशालाओं में 14 दिनों से ज्यादा भी काम करने की इजाजत मिलना सिर्फ यही जानने में अत्यंत सहायक नहीं होगा कि सामान्य रूप से हमारा विकास कैसे होता है, हम यह भी समझ पाएंगे कि “गड़बड़ कैसे हो जाती है” उन्होंने कहा कि भ्रूणों का गैस्ट्रुलेशन के दौरान या उसके बाद नष्ट हो जाना भी काफी सामान्य है. बल्कि अगर हल्की सी भी गड़बड़ हुई तो शरीर में पैदाइशी विषमताएं हो जाती हैं या भ्रूण नष्ट भी हो जाता है. जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में केनेडी इंस्टिट्यूट ऑफ एथिक्स के निदेशक डॉक्टर डेनियल सुलमासी ने कहा कि अब ज्यादा उम्र के भ्रूणों पर भी और शोध हो पाएगा.