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भारत के इन राज्यों में धूमधाम से मनाई जाती है दिवाली, लेकिन अलग-अलग अंदाज में


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नई दिल्ली – दीपावली यानी कि दीपों का त्यौहार। इस फेस्टिवल का नाम सुनते ही एक अलग-सी खुशी होती है। भारत में इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन कोई भी गली, मोहल्ला अंधेरे में नहीं रहता। भारत में दिवाली की कितनी धूम होती है ये तो सब जानते हैं ही, लेकि जनाव रौशनी का ये त्योहार सिर्फ भारत को ही नहीं जगमगाता, बल्कि कई ऐसे शहर हैं जहाँ दिपावली उतने ही उत्साह और खुशी के साथ मनाई जाती है जितना की हमारे देश में। सुनने में अजीब ज़रूर लगा होगा कि दिवाली सिर्फ देसी नहीं बल्कि इंटरनैशनल त्यौहार हो गया है।

भारत एक बहुत बड़ा देश है। हिन्दुस्तान के राज्यों में दीपावली का उत्सव मनाने की परंपरा अलग-अलग है। भारत को यदि हम 6 दिशाओं में विभाजित करके देखें तो एक होगा पश्चिम भारत, दूसरा पूर्वी भारत, तीसरा उत्तर भारत, चौथा दक्षिण भारत, पांचवां मध्यभारत और पूर्वोत्तर राज्य अर्थात पूर्व और उत्तर के बीच स्थित राज्य। गौर करने की बात यह है कि यह त्योहार लगभग सभी राज्यों में 5 दिनों तक चलता है।

इस दौरान घर की सफाई-पुताई करना, नए वस्त्र और बर्तन खरीदना, पारंपरिक व्यंजन बनाना, रंगोली बनाना, मिठाइयां बांटना, पटाखे छोड़ना और लक्ष्मी पूजा करना सभी राज्यों में प्रचलित है। बस फर्क है तो पारंपरिक व्यंजनों के स्वाद का, वस्त्रों का और पूजा का।

भारत के इन राज्यों में धूमधाम से मनाई जाती है दिवाली –
पश्चिम बंगाल –
बंगाल में दिवाली का त्योहार बहुत उत्साह व उमंग से मनाया जाता है। इसकी तैयारी 15 दिन पहले से शुरू कर दी जाती है। घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। दिवाली की मध्यरात्रि में लोग महाकाली की पूजा-अर्चना करते हैं।

ओडिशा – ओडिशा में पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन महानिशा और काली पूजा, तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा, चौथे दिन गोवर्धन और अन्नकूट पूजा और 5वें दिन भाईदूज मनाया जाता है। यहां आद्य काली पूजा का खासा महत्व है।

बिहार और झारखंड – दिवाली के मौके पर होली जैसा माहौल हो जाता है। यहां बहुत धूमधाम से दीपावली का पर्व मनाया जाता है। यहां पारंपरिक गीत, नृत्य और पूजा का प्रचलन है। अधिकतर क्षेत्रों में काली पूजा का महत्व है। लोग खूब एक-दूसरे से गले मिलते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, पटाखे छोड़ते हैं। धनतेरस के दिन यहां बाजार सज जाते हैं।

दीपावली के दिन असम, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, सिक्किम और मिजोरम उत्तर-पूर्वी राज्यों में काली पूजा का खासा महत्व है। दीपावली की मध्य रात्रि तंत्र साधना के लिए सबसे उपर्युक्त मानी जाती है इसलिए तंत्र को मानने वाले इस दिन कई तरह की साधनाएं करते हैं। हालांकि इस दिन दीप जलाना, पारंपरिक व्यंजन बनाना, मिठाइयां खाना और पटाखे छोड़ने का प्रचलन भी है।

गुजरात : गुजरात में सभी लोग दिवाली से पहले की रात को अपने घरों के सामने रंगोली बनाते हैं। पश्चिम भारत व्यापारी वर्ग का गढ़ रहा है तो यहां दिवाली में देवी लक्ष्मी के स्वागत का खासा महत्व है। सभी घरों में देवी के लिए चरणों के निशान भी बनाए जाते हैं और घरों को चमकीले प्रकाशों से प्रज्वलित किया जाता है।

गुजरात में दिवाली नए साल के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन कोई नया उद्योग, संपत्ति की खरीद, कार्यालय खोलना, दुकान खोलना और विशेष अवसर जैसे विवाह संपन्न होना शुभ माना जाता है। गुजरात में घरों में देशी घी के दीये पूरी रात जलाए जाते हैं। फिर अगली सुबह इस दीये की लौ से धुआं एकत्र करके काजल बनाया जाता है, जो महिलाएं अपनी आंखों में लगाती हैं। यह बहुत शुभ प्रथा मानी जाती है जिससे पूरे वर्षभर समृद्धि आती है। उत्तर भारत की तरह पश्चिमी भारत में दिवाली को 5 दिन तक मनाया जाता है।

महाराष्ट्र : महाराष्ट्र में दीपावली का त्योहार 4 दिनों तक चलता है। पहले दिन वसुर बरस मनाया जाता है जिसके दौरान आरती गाते हुए गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। दूसरा दिन धनतेरस पर्व मनाया जाता है। इस दिन व्यापारिक लोग अपने बही-खाते का पूजन करते हैं। इसके बाद नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले उबटन कर स्नान करने की परंपरा है। स्नान के बाद पूरा परिवार मंदिर जाता है। चौथे दिन दीपावली मनाई जाती है, जब माता लक्ष्मी के पूजन के पहले करंजी, चकली, लड्डू, सेव आदि पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।

गोआ : सुंदर से समुद्री तट पर बसे गोवा में गोवावासियों की दीपावली देखने लायक होती है। पारंपरिक नृत्य और गान से शुरू होने वाली दिवाली पर पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद महत्वपूर्ण होता है। यहां भी दीपावली का त्योहार 5 दिनों तक चलता है। इस दिन दीये जलाने और पटाखे छोड़ने का प्रचलन है। यहां रंगोली बनाने का खासा महत्व है। यहां का दीपावली का त्योहार भी श्रीराम और श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। हालांकि दीपावली के दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। भारत के अन्य राज्यों से लोग गोवा में घूमने जाते हैं। खासकर दशहरा और दिवाली के आसपास यहां दीपावली मनाना बहुत ही शानदार होता है। गोआ में दशहरा भी शानदार तरीके से मनाया जाता है।

उत्तर भारत – उत्तर भारत के अंतर्गत जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और उत्तरप्रदेश आते हैं। उत्तर भारत में दीपावली का त्योहार भगवान राम की विजयी गाथा और श्रीकृष्ण द्वारा शुरू की गई नई परंपरा और उत्सव से जुड़ा है। पहला दिन नरक चतुर्दशी श्रीकृष्ण से जुड़ा है। दूसरा दिन देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है। तीसरा दिन माता लक्ष्मी और अयोध्या में राम की वापसी से जुड़ा है। चौथा दिन गोवर्धन पूजा अर्थात श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है तो पांचवां दिन भाई दूज का है।

दक्षिण भारत – भारत के दक्षिणी भाग को दक्षिण भारत कहते हैं। दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र आते हैं।

तमिलनाडु : दक्षिण भारत में आज भी भारतीय हिन्दू संस्कृति अपने मूल रूप में बची हुई है। यहां दीपावली का पर्व तो मनाया ही जाता है लेकिन सबसे ज्यादा महत्व दिवाली के 1 दिन पूर्व मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। जैसे उत्तर भारत में दीपावली 5 दिन का उत्सव होता है, ऐसा दक्षिण भारत में नहीं होता। यहां मात्र 2 दिन का उत्सव होता है। इस दिन दीपक जलाने, रंगोली बनाने और नरक चतुर्दशी पर पारंपरिक स्नान करने का ही ज्यादा महत्व होता है।

दक्षिण भारत में सुबह सभी अपने घर का आंगन साफ-धो कर रंगोली बनाते हैं। इस दिन नए कपड़े पहनने और मिठाई खाने की परंपरा है। दक्षिण में दिवाली से जुड़ी सबसे अनोखी परंपरा है जिसे ‘थलाई दिवाली’ कहा जाता है। इस परंपरा के अनुसार नवविवाहित जोड़े को दिवाली मनाने के लिए लड़की के घर जाना होता है, जहां उनका स्वागत किया जाता है। उसके बाद नवविवाहित जोड़ा घर के बड़े लोगों का आशीर्वाद लेता है। फिर वे दिवाली के शकुन का एक पटाखा जलाते हैं और दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। दोनों के परिवार वाले जोड़े को अनेक तरह के उपहार देते हैं।

आंध्रप्रदेश : आंध्र में दिवाली में हरिकथा या भगवान हरि की कथा का संगीतमय बखान कई क्षेत्रों में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर को मार डाला था इसलिए सत्यभामा की विशेष मिट्टी की मूर्तियों की प्रार्थना होती है। अन्य सारे उत्सव दक्षिणी राज्यों की तरह मनाए जाते हैं।

कर्नाटक : कर्नाटक में दिवाली के 2 दिन मुख्य रूप से मनाए जाते हैं- पहला अश्विजा कृष्ण और दूसरा बाली पदयमी जिसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है। उसे यहां अश्विजा कृष्ण चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन लोग तेल स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मारने के बाद अपने शरीर से रक्त के धब्बों को मिटाने के लिए तेल से स्नान किया था। तीसरे दिन दिवाली के दिन को बाली पदयमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं घरों में रंगोलियां बनाती हैं और गाय के गोबर से घरों को लीपती भी हैं। इस दिन राजा बालि से जुड़ी कहानियां मनाई जाती हैं।

मध्यभारत – मध्यभारत में भारत के मुख्‍यत: 2 राज्य आते हैं- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। दोनों राज्यों में दीपावली का पर्व 5 दिनों का होता है। यहां के आदिवासी क्षेत्रों में दीपदान किए जाने का रिवाज है। इस अवसर पर आदिवासी स्त्री व पुरुष नृत्य करते हैं। यहां धनतेरस के दिन से यमराज के नाम का भी एक दीया लगाया जाता है। यह दीप घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है ताकि घर में मृत्यु का प्रवेश न हो।

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