आज है पापंकुशा एकादशी: जानिए इस दिन के शुभ मुर्हूत
मुंबई – हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। क्योंकि ये भगवान विष्णु को समर्पित है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पापांकुशा एकादशी के नाम से जानते हैं। इस साल यह तिथि 16 अक्टूबर, शनिवार को पड़ रही है।
आमतौर पर, एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं- शुक्ल और कृष्ण पक्ष के दौरान एक महीने में दो एकादशी होती है। हिंदू चंद्र कैलेंडर में अधिक मास (लीप मास) को जोड़ने पर एकादशियों की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ये लगभग 32 महीनों में एक बार होता है, इसलिए इस वर्ष, भक्त दो अतिरिक्त एकादशी व्रत रखेंगे, जिनमें से एक कल, 16 अक्टूबर, 2021 को मनाया जाएगा। इस दिन मौन रहकर भगवान विष्णु की अराधना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधिवत पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। इस व्रत से एक दिन पहले दशमी के दिन गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल तथा मसूर का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से व्रती, बैकुंठ धाम प्राप्त करता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त :
दिनांक- 16 अक्टूबर, 2021
एकादशी तिथि शुरू- 15 अक्टूबर 2021 को शाम 06:02 बजे
एकादशी तिथि समाप्त- 16 अक्टूबर 2021 को शाम 05:37 बजे
पारण समय- 17 अक्टूबर 2021 को सुबह 06:23 से 08:40 बजे तक
भगवान श्री कृष्ण ने पांडव राजा युधिष्ठिर को पापंकुशा एकादशी का महत्व बताया था। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद, राजा युधिष्ठिर अपने रिश्तेदारों को मारकर युद्ध के दौरान किए गए पापों से छुटकारा पाना चाहते थे। तो भगवान कृष्ण ने उसे सलाह दी और राजा से भगवान पद्मनाभ की पूजा करने को कहा। मान्यता है कि इस पुण्य व्रत का पालन करने से यमलोक में यातनाएं नहीं सहनी पड़ती हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य अपने जीवन में किए गए समस्त पापों से एक बार में ही मुक्ति पा सकता है।
पूजा विधि :
– सुबह जल्दी उठें, नहाएं और साफ कपड़े पहनें।
– भगवान पद्मनाभ की पूजा करें, पहले तिलक करें और फिर फूल, अगरबत्ती, प्रसाद आदि चढ़ाएं।
– भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते है।
– मंत्रों का जाप करें, विष्णु पुराण और कथा का पाठ करें।
– आरती कर पूजा का समापन करें।
एकादशी प्राण सूर्योदय के बाद किया जाता है, जो कि एकादशी व्रत के अगले दिन होता है. द्वादशी तिथि के भीतर पारण करना आवश्यक होता है, अन्यथा ये अपराध के समान माना जाता है।