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तापसी पन्नू की फ़िल्म रश्मि रॉकेट देखने से पहले एक बार जरूर चेक करे रिव्यु


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मुंबई – तापसी पन्नू की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ इस दशहरा, 15 अक्टूबर को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुयी। महिला सशक्तीकरण बदलते दौर में हिंदी सिनेमा के निर्माताओं का नया ब्रह्मास्त्र बनता दिख रहा है। हार, जीत, गिरना, उठना, रोमांच, रोमांस, गर्व, देशभक्ति… ऐसा कोई मसाला नहीं, जो खेल आधारित फ़िल्म में ना दिखाया जा सके।

हम सभी जानते है की बॉलीवुड फिल्मो में क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बॉक्सिंग के मुकाबले एथलेटिक्स को पर्दे पर कम प्रतिनिधित्व मिला है। अगर याद करें तो भाग मिलखा भाग, पान सिंह तोमर और बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन सिर्फ यही फिल्मे हमे याद होगी। आकर्ष खुराना निर्देशित रश्मि रॉकेट आज Zee5 पर रिलीज़ हुयी। ये सिर्फ़ एक एथलीट के ट्रैक पर संघर्ष या हार-जीत की कहानी नहीं है, बल्कि यह फ़िल्म इस खेल में पैबस्त एक ऐसी बुराई की बात करती है, जो महिला एथलीटों के स्वाभिमान पर चोट करती है।

‘रश्मि रॉकेट’ एक छोटे से गाँव की एक युवा लड़की के बारे में है, जिसे एक उपहार मिला है। वह एक अविश्वसनीय रूप से तेज धावक है जो फिनिश लाइन को पार करने का सपना देखती है। अपने सपनों को पूरा करने की यात्रा में, उसे जल्द ही पता चलता है कि फिनिश लाइन की दौड़ कई बाधाओं से भरी हुई है, और जो एक एथलेटिक प्रतियोगिता की तरह लगता है वह सम्मान, सम्मान और यहां तक ​​कि अपनी पहचान के लिए उसकी व्यक्तिगत लड़ाई में बदल जाता है।

फिल्म में फ्लैशबैक के जरिए भुज में रश्मि के बचपन और उसके परिवार के बारे में दिखाया है। बड़ी होने पर शहर रश्मि को ‘रॉकेट’ के नाम से पुकारता है जो एक टूरिस्ट गाइड के रूप में काम करती है। एक मुलाकात में रश्मि कैप्टन गगन (प्रियांशु पेन्युली) से मिलती है, पहली ही मुलाकात में रश्मि, गगन को भा जाती है। खूबसूरती के बजाए रश्मि के फर्राटेदार होने पर गगन का उस दिल आ जाता है। गगन को रश्मि की प्रतिभा का पता तब चलता है जब वह उसके सहयोगी के जिंदगी को बचाने के लिए दौड़ती है। रश्मि की स्पीड देख गगन उसे एथलीट बनने के लिए प्रोत्साहित करता है। जल्द ही भुज की रश्मि वीरा देश की उभरती हुई स्टार ‘रश्मि रॉकेट’ बन जाती है।

साल 2004 के एशियाई खेलों में रश्मि की आश्चर्यजनक परफॉर्मेंस हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचने में सफल हो जाती है। मगर उसकी यह प्रतिभा एथलेटिक्स एसोसिएशन के सदस्यों की साजिश का शिकार हो जाती है, लिंग परीक्षण किए जाने के बाद रश्मि को करार दे दिया जाता है कि वह एक पुरुष है। इस बिना पर एथलीट एसोसिएशन उस पर बैन लगा देती है। इतना ही नहीं, स्पोर्ट्स हॉस्टल में उसे पुलिस के हाथों ज़लील भी होना पड़ता है। इस परिस्थिति में उसकी मुलाकात एक वकील इशित (अभिषेक बनर्जी) से होती है जो उसे न्याय दिलाना चाहता है। क्या ‘रश्मि’ अपने भाग्य के आगे घुटने टेक देगी या भारत की महिला एथलीटों की भलाई के लिए, समाज के पूर्वाग्रहों और साजिश से लड़ेगी? रश्मि रॉकेट की कहानी इसी क्रम में आगे बढ़ती है।

मीडिया में भी यह केस ख़ूब उछलता है। रश्मि के संघर्ष में हर क़दम पर उसे गगन का साथ मिलता है। दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं और शादी कर लेते हैं। गगन, मां भानुबेन और वकील ईशित मेहता के ज़ोर देने पर रश्मि एथलेटिक्स एसोसिएशन के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट चली जाती है और बैन को चुनौती देती है। रश्मि रॉकेट अपने टाइटल का पालन करते हुए रॉकेट की तरह टेक ऑफ तो लेती है, मगर ऊपर चढ़ते रहने के बजाय जल्द ही पलटी मार लेती है। फ़िल्म के स्क्रीनप्ले में रश्मि के पैर तो हवा से बातें करते है, मगर फ़िल्म की रफ़्तार शिथिल पड़ जाती है। शुरू के लगभग 30-40 मिनट बोझिल लगती है। शुरुआत के मिनट में दर्शक कहानी से जुड़ने की उकताहट का सामना कर सकते है। इस अवधि में कुछ दृश्यों की बचत की जा सकती थी। रश्मि के भुज वाले हिस्से के कुछ दृश्य गैरज़रूरी लगते है।

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