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Chehre Review : ‘चेहरे’ का पहला हाफ जबरदस्त, आखिर में कही-कही ढीली हो जाती फिल्म


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मुंबई – थिएटरों में सिनेमा की वापसी हो चुकी है और अक्सर रूमानी-कॉमिक फिल्में लिखने वाले रूमी जाफरी बतौर निर्देशक कसी हुई थ्रिलर-मिस्ट्री लाए हैं। अदालतें नाटकीयता से भरपूर होती हैं और इस फिल्म में अदालत का नाटक है, जो असल से कम नहीं लगता. न्याय की दुनिया के कुछ रिटायर्ड बूढ़े अपनी हर शाम एक घर में इकट्ठा होते हैं और वहां कोई केस बनाकर अपनी अदालत लगाते हैं।

फिल्म में इमरान हाशमी एक लाइन बोलते हैं कि ”आजकल ईमानदार वो है जिसकी बेईमानी नहीं पकड़ी गई, और बेगुनाह वो है जिसका जुर्म नहीं सामने आया।” इस लाइन का फिल्म में खास महत्व है। फिल्म शुरू होती है बर्फ के पहाड़ों से घिरे घर में रहने वाले एक रिटायर जज जगदीश आचार्य (धृतिमान चटर्जी) के घर से, जहां अक्सर उनके बुजुर्ग दोस्तों की महफिल लगती है। उनके दोस्तों में अमिताभ बच्चन रिटायर क्रिमिनल लॉयर लतीफ जैदी के रोल में हैं। वहीं अन्नू कपूर रिटायर डिफेंस लॉयर परमजीत सिंह भुल्लर के रोल में हैं। इस फिल्म में ये सारे बुजुर्ग एक खेल खेलते हैं जिसमें वो किसी भी केस को असली अदालत के केस की तरह लड़ते हैं और फिर उसका फैसला भी सुनाते हैं और सजा भी देते हैं।

इस अदालत में ज्यादातर मुल्जिम अजनबी होता है। इस बार उनकी अदालत में मुल्जिम बनते हैं एड एजेंसी के सीईओ समीर मेहरा (इमरान हाशमी), जो बर्फ के तूफान में फंसकर उनके घर कुछ देर के लिए शरण लेने आते हैं। अमिताभ खेल शुरू करने से पहले ही कह देते हैं कि ‘हमारी अदालतों में जस्टिस नहीं जजमेंट होता है, इंसाफ नहीं फैसला होता है।’ लेकिन इमरान हाशमी को पता नहीं होता है कि खेल-खेल में टाइमपास वाले इस गेम का अंजाम क्या होने वाला है?

एक्टिंग –
फिल्म में अमिताभ बच्चन, इमरान हाशमी, अन्नू कपूर, क्रिस्टल डिसूजा जैसे बेहतरीन सितारे हैं। जहां अमिताभ बच्चन हमेशा की तरह अपनी भारी-भरकम आवाज और बेहतरीन अभिनय से दिल जीतते हैं वहीं अन्नू कपूर भी अपने खास अंदाज की वजह से याद रह जाते हैं। रघुबीर यादव का किरदार भी बेहद दिलचस्प है। रिया चक्रवर्ती ने ठीक-ठाक काम किया है दरअसल उनके किरदार को ठीक से नहीं दिखाया गया है, वहीं सिद्धांत कपूर का रोल भी क्यों है फिल्म में समझ नहीं आता, क्योंकि ना भी होता तो फिल्म पर कोई फर्क नहीं पड़ता। टीवी से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली क्रिस्टल अपनी खूबसूरती और अभिनय से दिल जीतती हैं। इमरान हाशमी की एक्टिंग दिन-ब-दिन और निखरती जा रही है। अमिताभ बच्चन जैसे बड़े स्टार के सामने भी वो इतने कॉन्फिडेंस से अभिनय करते हैं कि हमें लगता है इस एक्टर को और भी बहुत काम मिलना चाहिए।

कमजोरी –
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन का एक मोनोलॉग भी है। अमिताभ की आवाज में वो मोनोलॉग सुनने में बहुत अच्छा लगता है और वो कई जरूरी बातें भी कहते हैं। लेकिन इस फिल्म में उस मोनोलॉग की जरूरत नहीं होती है। यह फिल्म शानदार चल रही होती है उसमें निर्भया, लक्ष्मी अग्रवाल के बारे में (बिना नाम लिए) बोलते हुए अमिताभ बच्चन अपनी बात को बखूबी हम तक पहुंचा देते हैं मगर वही फिल्म की कमजोर कड़ी बन जाती है। क्योंकि उस मोनोलॉग को अगर 1-2 लाइन में समेट दिया जाता तो फिल्म और भी क्रिस्प होती और ज्यादा असर करती। उसकी वजह से फिल्म की लंबाई भी ज्यादा हो गई है। ये फिल्म बमुश्किल 2 घंटे के अंदर सिमट जानी चाहिए थी मगर फिल्म 20 मिनट और खींची गई है वो भी उस मोनोलॉग के लिए जिसका फिल्म से कोई लेना-देना ही नहीं होता है। हां अलग से आप वो वीडियो देखेंगे तो शायद उसका जरूर गहरा असर होगा।

खुबिया –
अन्नू कपूर के साथ इमरान हाशमी के भारी-भरकम डायलॉग हैं, हालांकि फिर भी ये आपको बोर नहीं करता है। फिल्म के डायलॉग लिखने वाले की तारीफ करनी होगी क्योंकि फिल्म के डायलॉग और पंचलाइन वाकई शानदार है। इसके अलावा फिल्म में सिनेमेटोग्राफी भी कमाल की है। सेकेंड हाफ में फिल्म रफ्तार पकड़ती है और हमें और भी ज्यादा दिलचस्प लगने लगती है। सस्पेंस पर सस्पेंस खुलते हैं। थ्रिलर फिल्मों के शौकीन हैं तो ‘चेहरे’ आपको पसंद आएगी, क्योंकि फिल्म के ये चेहरे शुरुआत से अंत तक आपको बांधे रखते हैं।

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