नई दिल्ली – आज पूरे देश में मनाया जा रहा है. इस्लाम धर्म से जुड़े लोग इस पर्व को हर साल रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिन बाद मनाते हैं. धुल्ल हिज – जिल हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाने वाली बकरीद के पर्व को कुर्बानी के पर्व के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं. लोगों के जेहन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर इस दिन बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है.
Greetings on Eid-ul-Adha. May this day bring happiness and prosperity to everyone. May it also uphold the spirit of togetherness and harmony in our society. Eid Mubarak!
— Narendra Modi (@narendramodi) June 29, 2023
प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर लिखा, ईद-उल-अज़हा की शुभकामनाएं. यह दिन सभी के लिए सुख और समृद्धि लाए. यह हमारे समाज में एकजुटता और सद्भाव की भावना को भी कायम रखे. ईद मुबारक!
इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईद उल-अजहा यानि बकरीद पर कुर्बानी की शुरुआत हजरत इब्राहीम के समय हुई थी, जिन्हें अल्लाह का पला पैगंबर माना जाता है. मान्यता है कि एक बार फरिश्तों के कहने पर अल्लाह ने उनका इम्तिहान लेने का निर्णय किया. इसके बाद अल्लाह ने उनके सपने में जाकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने के लिए कहा. ऐसे में हजरत इब्राहीम ने तय किया कि उनका बेटा इस्माइल ही उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है, जिसने कुछ समय पहले ही उनके घर में जन्म लिया था. इसके बाद हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के लिए अपने बेटे को कुर्बान करने की ठान लिया.
द-उल-अजहा ईद के बाद मुसलमानों का दूसरा सबसे पवित्र त्योहार है. इसे बकरा-ईद या बकरीद के नाम से भी जाना जाता है. इसे हिजरी कैलेंडर के 12वें आखिरी महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. इस बार यह त्योहार गुरुवार (29 जून) को मनाया जा रहा है.गुरुवार की सुबह से मस्जिदों और ईदगाहों में नमाजियों की भीड़ उमड़ी. लोगों ने नमाज अदा कर सुख-समृद्धि के साथ देश में अमन व चैन की दुआ मांगी. कुर्बानी बकरीद का सबसे प्रमुख हिस्सा है.