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राजनीति

Election 2023: आदर्श आचार संहिता लगने के बाद नहीं हो सकते ये काम-जानें


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नई दिल्लीः देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट या आदर्श चुनाव आचार संहिता बनाई है. देश के पांच राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान ,छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान होते ही आदर्श चुनाव आचार संहिता प्रभावी हो जाएगी.फिलहाल, इन सभी चुनावी राज्यों में उथल-पुथल मची हुई है। सभी पार्टियां अपने वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है और लगातार घोषणाएं कर रही है। चुनाव आयोग द्वारा सभी राज्यों के चुनावी तारीखों के ऐलान होने के बाद से ही ‘मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट’ यानी ‘आचार संहिता’ लागू हो जाएगी, जिसके बाद कुछ बदलाव देखने को मिलेगा। हालांकि, बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि आखिर चुनाव आचार संहिता क्या है।

क्या है आचार संहिता

यहां बताते चले कि देश में किसी भी चुनाव को निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से सम्पन्न करने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम-शर्तें तय की हैं.इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते है.आदर्श आचार संहिता कानून के द्वारा लाया गया प्रावधान नहीं है.आसान शब्दों में कहें तो आचार संहिता एक नियमावली है, जिसके तहत चुनाव को निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से करने के लिए चुनाव आयोग कुछ नियम-शर्तें तय करता है।.यह सभी राजनीतिक दलों की सर्वसहमति से लागू व्यवस्था है, जिसका सभी को पालन करना होता है.

आचार संहिता की शुरुआत कब से हुई 

आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले साल 1960 में केरल विधानसभा चुनाव में हुई थी, जिसमें इसके तहत बताया गया कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं.इसके बाद वर्ष 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता के बारे में सभी राजनीतिक पार्टियों को अवगत कराया गया.1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने सभी सरकारों से इसे लागू करने को कहा और यह सिलसिला आज भी जारी है.समय-समय पर चुनाव आयोग इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव करता रहता है.

आचार संहिता कब से कब तक प्रभावशाली रहती है

चुनाव आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जब चुनाव प्रोग्राम की तारीखें घोषित करता है, उसी के साथ ही आचार संहिता भी प्रभावशाली हो जाती है। यह निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्ण होने तक प्रवृत्त रहती है। या यूं कहें कि रिजल्ट आने तक ये प्रभाव में रहती है। चुनाव में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक दल, उम्मीदवार, सरकार और प्रशासन समेत चुनाव से जुड़े सभी लोगों पर इन नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी होती है। 

आचार संहिता में किन कामों पर होती है पाबंदी

आचार संहिता लगने के बाद किन कामों पर रोक होगी इसे लेकर निर्वाचन आयोग ने गाइडलाइन बनाई है. उनमें से कुछ प्रमुख गाइड लाइन ये है.

आचार संहिता लागू होने के बाद केंद्र या राज्य सरकार किसी नई योजना और नई घोषणाएं नहीं हो सकतीं.कोई भूमि पूजन और लोकार्पण भी नहीं हो सकता है.
चुनावी तैयारियों के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.सरकारी गाड़ी, बंगला, हवाई जहाज आदि का उपयोग वर्जित होगा.
आचार संहिता लागू होते ही दीवारों पर लिखे गए सभी तरह के पार्टी संबंधी नारे व प्रचार सामग्री हटा दी जाती हैं.होर्डिंग, बैनर व पोस्टर भी हटा दिए जाते हैं.
राजनीतिक दलो को रैली, जुलूस या फिर मीटिंग के लिए परमिशन लेनी होती है.
धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जाएगा.
मतदाताओं को किसी भी तरह से रिश्वत नहीं दी जा सकती है.रिश्वत के बल पर वोट हासिल नहीं किए जा सकते है.
किसी भी प्रत्याशी या पार्टी पर निजी हमले नहीं किए जा सकते है.
मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करवा सकते है.
मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित न की जा सकती है.

निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी

चुनाव की तारीख का एलान से पहले भी कई ऐसे नियम और आयोग की जिम्मेदारी होती है, जिस पर चुनाव आयोग की नजर रहती है.राज्य में चुनाव की तारीख एलान से पहले यदि कोई अधिकारी किसी एक ही जिले में तीन वर्ष से अधिक समय से तैनात तो उस जिले से उसका ट्रांसफर करना होगा.गृह नगर में तैनात अफसरों का भी ट्रंसफर कर दिया जाता है.इसी कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षकों सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के थोकबंद तबादले किये गए.निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी

नियम तोड़ने पर क्या होगी कार्यवाही

आचार संहिता लागू होते ही सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते है.वह आयोग द्वारा दिए गये दिशा-निर्देश के अनुसार ही कार्य करते हैं.साथ ही चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गये निर्देशों का पालन भी सुनिश्चित करते हैं.अगर कोई इन नियमों का पालन नहीं करता है, अथवा उल्लघंन करते पाया जाता है, तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है या उसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो सकती है.दोषी पाए जाने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है.

आम आदमी पर भी लागू

कोई आम आदमी भी इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर भी आचार संहिता के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी. इसका आशय यह है कि अगर आप अपने किसी नेता के प्रचार में लगे हैं तब भी आपको इन नियमों को लेकर जागरूक रहना होगा. अगर कोई राजनेता आपको इन नियमों के इतर काम करने के लिए कहता है तो आप उसे आचार संहिता के बारे में बताकर ऐसा करने से मना कर सकते हैं. क्योंकि ऐसा करते पाए जाने पर तत्काल कार्रवाई होगी. ज्यादातर मामलो में आपको हिरासत में लिया जा सकता है.

ये काम हैं वर्जित

चुनाव के दौरान कोई भी मंत्री सरकारी दौरे को चुनाव के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता. सरकारी संसाधनों का किसी भी तरह चुनाव के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. यहां तक कि कोई भी सत्ताधारी नेता सरकारी वाहनों और भवनों का चुनाव के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता. केंद्र सरकार हो या किसी भी प्रदेश की सरकार, न तो कोई घोषणा कर सकती है, न शिलान्यास, न लोकार्पण कर सकते हैं.

चुनावी खर्च में क्या-क्या होता है शामिल

चुनावी खर्च वह राशि है जो एक उम्मीदवार चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च करता है। इसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है। जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किए गए सभी व्यय का अलग और सही खाता रखना होता है। चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों में उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है। यदि उम्मीदवार ने गलत विवरण प्रस्तुत किया तो अधिनियम की धारा 10 के तहत चुनाव आयोग उसे तीन साल के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है।

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