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कोलकाता के पाइस होटल्स जहां अब भी 03 रुपए में मिलता है खाना


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कोलकाता – आज कल के महंगे ज़माने में कोलकाता शहर में अब भी कई पाइस होटल हैं, जहां खाना बहुत सस्ता मिलता है. झोल और भात आप अब भी 03 रुपए में खा सकते हैं. ऐसा केवल एक दो नहीं बल्कि कोलकाता में बिखरे हुए तमाम होटल में मिलेगा. पाइस होटल नाम नहीं है बल्कि इनके सस्ता होने के कारण इन्हें पाइस होटल कहा जाता है. ये होटल आज के हैं भी नहीं. कुछ 100 साल से ज्यादा पुराने हैं तो 60-70 साल पुराने.

इन होटलों को भातेर होटल या राइस होटल भी कहा जाता है. कुछ लोग इन्हें हिंदू होटल भी कहते हैं. अगर आप कोलकाता जा रहे हों तो इनमें जाना नहीं भूलें, जहां आपको कोलकाता के पारंपरिक खाने का स्वाद मिलेगा और वो भी बेहद सस्ते में. ये बात सही है कि इनमें से कुछ होटलों में खाना 03 रुपए में मिल जाता है और कुछ में इससे कुछ ज्यादा कीमत में लेकिन तब भी ये देश के दूसरे शहरों की तुलना में बहुत सस्ता और बेहतर है.

हालांकि इन सभी होटलों में अलग अलग और भी स्वादिष्ट जायके वाले व्यंजन मिलते हैं. जिनके रेट अलग हैं लेकिन कई पाइस होटल्स में भरपेट खाना आप 03 रुपए से लेकर 25 रुपए तक में खा सकते हैं. जहां जमीन पर बिछी टाट में केले के पत्ते और कटोरियों में भोजन परोसा जाता है तो कुछ पाइस होटल्स में कुर्सी मेज भी आ गई हैं.

वेज थाली सस्ती होती है तो नान वेज थाली कुछ महंगी. ये सभी परंपरागत बंगाली व्यंजन होते हैं, जिसमें सरसों का तेल और राई का भरपूर इस्तेमाल होता है. कहा जाता है कि कोलकाता शहर में आप कभी भूखे नहीं रह सकते. ये शहर वाकई किसी को भूखे नहीं रहने देता. बेशक आपके भले आपके पास ज्यादा पैसा नहीं हो लेकिन पाइस होटलों में आप सस्ता, अच्छा और भरपेट खाना खा सकते हैं. हालांकि बहुत से पाइस होटल पिछले कुछ सालों में बंद भी हुए हैं लेकिन अब भी काफी होटल चल रहे हैं.

ये पाइस होटल अंग्रेजों के जमाने में यहां शुरू हुए थे. तब कलकत्ता देश की राजधानी थी. ब्रितानी राज का कामकाज अंग्रेज यहीं बैठकर चलाते थे. ब्रिटिश राज में पैसे को पाइस कहा जाता था. इसकी कीमत 01 क्वार्टर या 01 आने के बराबर थी. ये खाने की जगहें बेशक साधारण लगें लेकिन कुछ पैसों में लोगों को स्वादिष्ट और साफ खाना खिलाती हैं. कोलकाता में हजारों लोगों का खाना यहीं से रोज होता है. इसकी अवधारणा ये थी कि कोलकाता में हजारों लोग ऐसे हैं, जो बाहर से आए हैं. उन्हें घर जैसे खाने की जरूरत है और ये सस्ता भी होना चाहिए.

यहां का खाना लंबे समय से पारंपरिक ही है. मेनु में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ. यहां मच्छा भाजा (फ्राइड फिश), माछर झोल (फिश करी), कुमरो फूल भाजा (कद्दू के फ्लावर की सब्जी), आलु पोस्तो (आलू की सब्जी पोश्ता दाना के साथ दी जाती है और साथ में दिया जाता है चावल. यहां खाना परोसने का तरीका थोड़ा अलग है. पाइस होटल खाने को केले के पत्तों और कटोरियों में परोसता है. खाना खाने वाले ग्राहकों को जमीन पर बिछी मैट्स पर इस कतार में बैठना होता है. यहां कोई मेनू कार्ड नहीं होता. अगर मेनू रोज बदल रहा है तो उसे ब्लैकबोर्ड में बाहर लिख दिया जाता है. यहां हर अलग आइटम का दाम अलग होता है. ताकि खाना की बर्बादी कम और लोगों पर दामों का बोझ भी कम पड़े. हालांकि ग्राहकों को केला पत्ता, नींबू का भी पैसा देना पड़ता है लेकिन सब मिलाकर भी इनका दाम बहुत कम होता है.

इन होटलों में से कुछ तो कई पीढ़ियों से चलाए जा रहे हैं. इन पाइस होटलों में तरुण निकेतन, सिद्धेश्वरी आश्रम, स्वादिन भारत, जगन्नाथ आश्रम, प्रभाती होटल, पार्वती होटल यहां से प्रसिद्ध और पुराने होटलों में हैं. कुछ होटलों को महिलाएं भी चलाती हैं. एक दिन में यहां कम से कम 300-400 लोग खा ही लेते हैं.

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